Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: मूँगफली की फसल को पत्ती सुरंगक और सफ़ेद लट से बचाएँ

मूँगफली की फसल को पत्ती सुरंगक और सफ़ेद लट से बचाएँ

जिन किसानों ने अपने खेत मे खरीफ मूँगफली की बुवाई समय पर की है उनकी फसल लगभग एक महीने की हो गयी होगी। अत: अपने खेत एवं आस-पास की फसलों पर कीट एवं व्याधियों की शुरुआत से ही निगरानी रखें। इस समय मूँगफली बोने वाले किसानों को दो प्रमुख कीटों की समस्या अधिक आरही है जो मुख्यतः फसल में 20 - 30 दिन मे नुकसान करना शुरू कर देते है।
  1. इनमें पहला पत्ती सुरंगक (लीफ माइनर) कीट है, जिसके वयस्क पतंगे छोटे एवं गहरे भूरे रंग के तथा इनके आगे के पंखों पर पीले-सफेद बिन्दुओं के निशान होते है। काले सिर वाली हरे-भूरे रंग की छोटी इल्ली अण्डे से बाहर आते ही पत्तियों को खोदकर अंदर से पर्णमध्यक को खाती हुई सुरंग बनाती है, जिसके कारण मध्यशिरा के पास से पत्तीयाँ झिल्लीनुमा दिखाई देने लगती है। धिरे-धिरे इल्ली बड़ी होने पर पत्तियों को आपस मे मोड़ कर उनको अंदर से खाते हुए जाले नुमा बना देती है। प्रकोप बढने के बाद दूर से देखने पर फसल जली हुई दिखती है। बुवाई के लगभग 25 – 30 दिन बाद यदि एक पौधे पर पाँच या अधिक लीफ माइनर की लटें दिखाई दें तो यह आर्थिक हानि स्तर माना जाता है, अत: इसके नियंत्रण का उपाय तुरंत करना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हों इसके जैविक नियंत्रण हेतु नीम का तेल, नीम के बीज की गिरी का सत्त, घर पर तैयार जैविक कीटनाशी मे से किसी एक के 3 प्रतिशत (3 मि.ली. प्रति लीटर पानी) घोल का छिड़काव करें। रासायनिक नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा को 1.2 लीटर या ईमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. दवा को 200 मि.ली. या थायमिथोक्ज़ाम 25 डब्ल्यू.जी. दवा को 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव भी करें सकते है। यदि आवष्यकता हों तो छिड़काव 10-15 दिन बाद दोहरायें। 
  2. दूसरा मुख्य कीट सफेद लट (व्हाइट ग्रब) है, जो खेतों मे सामान्यतः मानसून की वर्षा या पानी लगने पर इस कीट के वयस्क भृंग जमीन से निकलकर परपोषी वृक्षों (नीम, खेजड़ी, बेर, अमरूद, आम) पर बैठ जाते है, और कुछ ही दिन बाद खेतों मे अण्डे देते है। जमीन के अंदर रहने वाली इसकी लट हष्ट-पुष्ट, काले भूरे सिर एवं अर्धपारदर्षी सफेद रंग की होती है। इस कीट की लट एवं वयस्क दोनों अवस्थाए फसल को नुकसान पहुँचाती है। लट जमीन के अन्दर पौधों की जड़ों व राइजोबियम की गाँठों को खाती है जिससे पौधों का रंग पीला हो कर पत्ते व शाखाएँ झुकने लगती है और अंत मे पौधे सूखने से मर जाते है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों मे प्रभावी नियंत्रण के लिए इसके प्रौढ़ एवं लट दोनों का नियंत्रण करना जरूरी होता है। सर्वप्रथम फसल कटाई के बाद खेत मे गहरी जुताई करके छोड़ना चाहिए ताकि कुछ को पक्षी खा जायेंगे और कुछ गर्मी से मरेंगे। प्रौढ़ के नियंत्रण हेतु मानसून की वर्षा के बाद जब खेतों की मेड़ पर पेड़ों मे इनकी उपस्थिती दिखें तब शायकाल या रात मे पानी की उपलब्धता होने पर क्युनालफॉस 25 ई.सी. दावा का 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। लट के नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. दवा का उपयोग 4 मि.ली. प्रति किलो बीज की दर से बुवाई पूर्व बीजोपचार के लिए करना चाहिए, तथा खड़ी फसल मे इसके लक्षण दिखाई देने पर कीट की गंभीरता के अनुसार इसी दवा की 1 - 2 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ पौधों के जड़ क्षेत्र मे डालें।