Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: बाजरे की फसल को हैलिकोवर्पा की लट एवं अर्गट रोग से बचायें

बाजरे की फसल को हैलिकोवर्पा की लट एवं अर्गट रोग से बचायें

खरीफ ऋतु मे शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में बाजरे की खेती प्रमुख अनाज वाली फसल के रूप मे की जाती है, जो खाने के अलावा पशुओं के लिए पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण होती है।

बाजरा की उपज में उल्लेखनीय वृद्धि के लिए उन्नत सस्य क्रियाओं के साथ ही पौध संरक्षण तकनीक को अपनाना भी अतिआवश्यक कार्य है। बाजरे की खड़ी फसल में कीट व बीमारियों के बढ़ते प्रकोप के कारण फसल की उपज पर काफी असर पड़ता है।

बाजरे की फसल में ईयर हेड केटरपिलर (हैलिकोवर्पा प्रजाति की लट) जो की मुख्यरूप से चने  का कीट है, यह सिट्टे की दुधिया व दाना भरने की अवस्थाओं पर नए दानों को खा कर नष्ट कर देती है।


इस कीट के नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बैंजोएट 5 एस.जी. की 0.5 ग्राम या क्लोरेंट्रानिलीप्रोल 18.5 एस.सी. की 0.25 मि.ली. या इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. या प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. की 2 मि.ली. दवा को प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हों तो छिड़काव को 10-12 दिन बाद दोहरायें। उपरोक्त छिड़काव करते समय किसान अपने मुँह पर माश्क या कपड़ा तथा हाथों में दस्ताने जरुर पहनें।


दूसरा प्रमुख कीट है दीमक; यह खड़ी फसल की जड़ों को जमीन मे ही काटकर खा जाती है। दीमक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत पाउडर का 24 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व जमीन मे मिलायें । तथा खड़ी फसल मे नियंत्रण हेतु क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. दवा की 3-4 लीटर मात्रा को सिंचाई के साथ भूमि मे डालें या हल्की वर्षा के समय मिट्टी में मिलाकर बिखेर दें।

बाजरे के रोग मे अर्गट प्रमुख है। यह रोग बाली बनते एवं दाना भरते समय बाजरे के सिट्टे को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसमे रोगग्रस्त पौधों में बालियों पर शहद जैसी चिपचिपी बूंदें दिखाई देने लगती है। शहद जैसा यह पदार्थ बाद मे सूखकर गाढ़ा पड़ जाता है, जिसमे क्लेविसेप्स फ्यूजीफोर्मीस नामक फफूँद होती है, जो मनुष्यों व पशुओं के लिए हानिकारक है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल की बुवाई उचित समय पर करें, बुवाई हेतु प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें, खेत में रोगग्रस्त बालियों को काटकर जला देना चाहिए। बीजों को 10 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर अच्छे बीजों को निकालने के बाद साफ पानी से धोकर सुखायें तथा उसके बाद 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से कार्बेण्डाजिम या मेंकोजेब से उपचारित करके ही बुवाई करें । खड़ी फसल में रोग की रोकथाम के लिए कार्बेण्डाजिम या मेंकोजेब  की  2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।