Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: खरीफ दलहनों में कातरा, भृंग एवं फली छेदक कीटों का प्रबंधन

खरीफ दलहनों में कातरा, भृंग एवं फली छेदक कीटों का प्रबंधन

मूँग, मोठ, उड़द, चँवला, अरहर आदि खरीफ मे उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें है। इनकी खेती बारानी व सिंचित दोनों ही परिस्थितियों मे की जाती है, किन्तु कम सिंचाई मे होने से शुष्क

क्षेत्रों मे अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा लिया जाता है। दलहनी फसलों के भी कई कीट एवं रोग नुकसान पहुंचाते है, जिनमें चूसक कीटों के अतिरिक्त कातरा, फफोला भृंग एवं फली छेदक भी इनके उत्पादन को बहुत हद तक प्रभावित करते है, जिनका समय पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

 

दलहनी फसलों के प्रमुख फली छेदक एवं फफोला भृंग कीट:-

 

(1) कातरा/हैयरी केटरपिलर (डायक्रिसिया/स्पिलोसोमा ओब्लिका):-

कातरा की इल्ली लाल भूरे रंग की होती है जिसके शरीर पर लम्बे बाल होते है। कातरा पौधों के उगते हुए एवं उगे हुए पौधों के पत्तों को कुतर कर खा जाता है, जिससे पौधे पत्ते रहित होकर नष्ट हो जाते है। प्रकोप बढने पर खेत में केवल पौधों के तने और पत्तों से विहीन शाखाएं ही दिखाइ देती है। कातरा का प्रकोप विशेष रूप से सभी दलहनी फसलों में बहुत होता है।


 कातरे का नियंत्रण:- 

v  मानसून की वर्षा के साथ ही कातरे के पतंगों का जमीन से निकलना शुरू हो जाता है, इसी समय प्रकाष पाष द्वारा इनको नियंत्रित किया जाना चाहिए। इस हेतु पतंगों को प्रकाष की ओर आकर्षित करने के लिए खेत की मेड़ों पर लालटेन या बिजली का बल्ब जलायें तथा इसके नीचे परात या चोड़े मुह के बर्तन मे मिट्टी का तेल या जला हुआ ऑइल रखें, ताकि आकर्षित हाने वाले कीट इसमे गिर कर मर जायेंगे।

v  कातरे की लटों के एक से दूसरे खेतों मे आगमन को रोकने के लिए खेत के चारों ओर खाई खोदकर उसमे क्युनालफॉस 1.5 प्रतित पाउडर भुरक दें।

v  फसल को नुकसान कर रहे कातरे की लटों के नियंत्रण हेतु क्युनालफॉस 1.5 प्रतित चुर्ण को 24 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें या पानी की उपलब्धता होने पर क्युनालफॉस 25 ई.सी. की 1 लीटर या क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. की 1.2 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर कर दर से 500 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

(2) ब्लिस्टर बीटल/फफोला भृंग (माइलेब्रिस फेलेराटा):-

इस कीट की सूंड़ी सफेद रंग की होती है। वयस्क कीट हष्ट-पुष्ट होता है तथा इसके काले रंग के पंखों (इलाइट्रा) पर नारंगी रंग का एक धब्बा और दो तिरछी लहरदार धारियाँ बनी होली है। यह कीट दलहन के पौधों की कलियों, फूलों व कोमल टहानियों को पेटु (भुक्खड़) की तरह खाता है। यदि प्रकोप बड़ जाये तो खेत में फलियों की कुल संख्या कम कर सकता है। यह कीट एक प्रकार का पीला द्रव स्त्रावित करते है जिससे अपने शरीर पर फफोले हो जाते है।

 

(3) फली छेदक/पोड बोरर (मारूका टेस्टुलेलिस, हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा, इटिएला जिंकेनेला):-

मारूका की सूंड़ी; हरे-सफेद रंग की जिसका सिर भूरा एवं शरीर के हर खण्ड पर दो काले धब्बो के जोड़े होते है। हेलिकोवर्पा की सूंड़ी; हरे रंग की जो बाद मे भूरे रंग की हो जाती है। इटिएला की सूंड़ी; पहले हरे रंग की जो बाद मे गुलाबी रंग मे बदल जाती है। ये लटें प्रारम्भ में पौधों की कोमल पत्तियों को खुरच कर खाती है तथा बाद में बड़ी होने पर फलियों में छेद बनाकर अन्दर से दानों को खाती रहती है। एक सूड़ी अपने जीवन काल में 30–40 फलियों को प्रभावित कर सकती है। तीव्र प्रकोप की दशा में फलियाँ खोखली होने से उत्पादन प्रभावित होता है।

 

फली छेदक एवं फफोला भृंग का नियंत्रण:-

v  गर्मी मे गहरी जुताई व समय पर बुआई एवं उचित फसल ज्यामिती का रखें ध्यान।

v  फली छेदक कीट की निगरानी हेतु 5 फेरोमोन ट्रैप (गंध पाष)/हैक्टेयर प्रयोग करें। कीट की संख्या आर्थिक हानि स्तर (ई.टी.एल.) लगभग 2–3 सूंडी/मीटर फसल पंक्ति या 3–4 पतंगे लगातार 2–3 दिन तक पकड़े जाने पर इसका नियंत्रण तुरंत करना चाहिए।

v  पक्षियों को आकर्षित करने के लिए 3–5 फिट लम्बी लगभग 30–40 खूंटीयाँ (पक्षीयों के लिए बसेरा) प्रति हैक्टेयर की दर से लगाने चाहिए, जिससे कीटभक्षी पक्षियों को खेत पर रूकने मे आसानी हों। ध्यान रहें, इन खूंटीयों को फलियों मे दानें बननें पर हटा दें।

v  नीम आधारित कीटनाषक (नीम-सीड-कर्नल एक्सट्रेक्ट, नींबीसिडिन, नीमेक्स आदि) 15 मि.ली. + तरल साबुन 1 मि.ली. को प्रति 5 लीटर पानी की दर से 600 लीटर पानी मे घोल बनाकर शाम के समय छिड़काव करें।

v  रासायनिक नियंत्रण हेतु इमामेक्टिन बेंजोएट 1.9 ई.सी. को 600 मि.ली. या क्युनालफॉस 25 ई.सी. को 1200 मि.ली. या इण्डोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. को 600 मि.ली. प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर करें।