दलहन के उत्पादन मे चना प्रमुख फसल है, जिसका उपयोग मुख्यतः साबुत दानें, दाल व बेसन के रूप में किया जाता है। चना की फसल कम सिंचाई मे होने के कारण कम वर्षा वाले स्थानों मे भी इससे अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। चने की खेती संरक्षित नमी के
बारानी व सिंचित क्षेत्रों दोनों ही परिस्थितियों मे की जा सकती है।उन्नत किस्में: जी.एन.जी. 1958, जी.एन.जी.
2144, जी.एन.जी. 1969, जी.एन.जी.
1581, जी.एन.जी. 1499, जी.एन.जी.
1488
बीज की मात्राः बीज के आकार के अनुसार
छोटे दानों के लिए 60, मध्यम दानों के लिए 80, बड़े
दानों के लिए 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से बीज की मात्रा का उपयोग किया
जाता है।
बीज उपचारः 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50
डब्ल्यू.पी. प्रति कि.ग्रा. + 4
मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. + 10
ग्राम राईजोबियम कल्चर प्रति कि.ग्रा.
फसल ज्यामितीः कतार से कतार 30 सेन्टीमीटर
तथा पौधे से पौधे 10 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधनः चना मे पोषक तत्व
प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 32
कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 20
कि.ग्रा. पोटास एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के
अनुसार करें;
पोषक तत्व |
खाद/उर्वरक |
ईकाइ |
खाद/उर्वरकों
की मात्रा (प्रति हैक्टेयर) |
|
विकल्प
1 |
विकल्प
2 |
|||
जैविक खाद |
कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट |
टन |
10/5 |
10/5 |
नत्रजन |
युरीया |
कि.ग्रा. |
18 |
45 |
फॉस्फोरस |
डी.ए.पी. |
कि.ग्रा. |
70 |
-- |
एस.एस.पी. |
कि.ग्रा. |
-- |
200 |
|
पोटास |
एम.ओ.पी. |
कि.ग्रा. |
33 |
33 |
गंधक |
तत्व
गंधक |
कि.ग्रा. |
42 |
16 |
जिप्सम |
कि.ग्रा. |
250 |
100 |
बुवाई के 20-25 दिन पहले अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार
की गयी कम्पोस्ट खाद एवं तत्व गंधक या जिप्सम की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से
पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें। जबकी नत्रजन एवं फॉस्फोरस की उचित मात्रा को
बुवाई के समय बीज के साथ सीड-कम-फ़र्टिलाईज़र ड्रिल से डालें।
सिंचाई प्रबंधनः चने में सुखा सहन करने की क्षमता अधिक होने के कारण इसकी खेती मुख्य रूप से संरक्षित नमी के बारानी क्षेत्रों में भी की जाती है, किन्तु यदि सिंचाई हेतु पानी उपलब्ध हों तो जमीन एवं वर्षा के अनुसार दो सिचाईयाँ की जा सकती है। पहली सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद (फूल आने से पहले) करें, तथा दूसरी सिंचाई 65-70 दिन बाद (फली में दानें बनते समय) करें। ध्यान रहें, चनें की फसल मे फूल आते समय सिंचाई बिल्कुल भी न करें।
खरपतवार नियन्त्रणः चने की फसल में कम से कम दो
निराई-गुडाई की जरूरत होती है। पहली बार 30-35 दिन बाद करें तथा इसी समय पौधो की
छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रख लें जीससे कि फसल पर कीटों व
रोगों का प्रकोप अपेक्षाकृत कम हों। दूसरी निराई-गुडाई आवश्यकता हों तो 50-55 दिन
बाद करें। जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए
बुवाई के बाद परंतु अंकुरण से पहले पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. दवा को 2.5 लीटर प्रति
हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।