कुल दलहन उत्पादन मे मोठ (मोठ बीन) आठवें स्थान पर है, तथा विश्व पटल पर भारत एवं देश मे राजस्थान मोठ के उत्पादन मे अग्रणी है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मोठ की खेती बारानी परिस्थितियों मे किये जाने से शुष्क से
उन्नत किस्में:
आर.एम.ओ. 225 (मरू
वरदान), आर.एम.ओ. 257, आर.एम.ओ. 435 (मरू बहार), आर.एम.ओ. 423, आर.एम.ओ. 2251 (मरूधर)
बीज की
मात्राः मोठ की बुवाई हेतु 16 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से पर्याप्त
रहता है। जबकि बारानी परिस्थिति के अनुसार बीज की मात्रा 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर
की दर से उपयोग की जा सकती है।
बीज
उपचारः मोठ के बीज को बुवाई से
पूर्व 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50 डब्ल्यू.पी.
+ 4 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. + 10 ग्राम राइज़ोबीयम कल्चर प्रति किलोग्राम
बीज की दर से एफ.आई.आर. तकनीक द्वारा उपचारित जरूर करें।
फसल
ज्यामितीः कतार
से कतार 30 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।
पोषक
तत्व प्रबंधनः- मोठ मे
उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 32 कि.ग्रा. फॉसफोरस एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की
मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करें;
पोषक तत्व |
खाद/उर्वरक |
ईकाइ |
खाद/उर्वरकों की
मात्रा (प्रति हैक्टेयर) |
|
विकल्प 1 |
विकल्प 2 |
|||
जैविक खाद |
कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट |
टन |
8/4 |
8/4 |
नत्रजन |
युरीया |
कि.ग्रा. |
18 |
45 |
फॉस्फोरस |
डी.ए.पी. |
कि.ग्रा. |
70 |
-- |
एस.एस.पी. |
कि.ग्रा. |
-- |
175 |
|
गंधक |
तत्व गंधक |
कि.ग्रा. |
42 |
20 |
जिप्सम |
कि.ग्रा. |
250 |
100 |
नोटः खाद एवं उर्वरकों का
उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट विकल्पों तथा गंधक युक्त्त उर्वरकों में से भी किसी एक
विकल्प के आधार पर करें।
बुवाई के
20-25 दिन पहले अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद एवं तत्व गंधक या
जिप्सम की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें।
जिप्सम का उपयोग तीसरे वर्ष करना चाहिए। जबकी नत्रजन एवं फॉसफोरस की उचित मात्रा
को बुवाई के समय बीज के साथ सीड-कम-फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें। गंधक युक्त्त उर्वरक का उपयोग मृदा मे कमी होने पर ही करें।
सिंचाई
प्रबंधनः
मोठ को वर्षा होने के कारण सिंचाई की आवश्यकता नही
होती है, अपितु अधिक वर्षा होने की स्थिति मे जल निकास की
व्यवस्था करनी होती है। लेकिन बुवाई के बाद फसल की प्रमुख क्रांतिक
अवस्थाओं (वानस्पतिक वृद्धी, पुष्पन
एवं फली भरने) के दौरान यदि अनियमित वर्षा के कारण सूखा पड़ने
की स्थिती हों तो उस समय पूरक/जीवनरक्षक सिंचाई की व्यवस्था की जा सकें तो उत्पादन अच्छा मिलता है।
खरपतवार
नियन्त्रणः
निराई-गुडाईः
मोठ की फसल में कम से कम दो निराई-गुडाई की आवश्यकता
होती है। पहली बार 20-25 दिन बाद करें तथा इसी समय पौधो की छंटनी करके पौधे से
पौधे की दूरी 10 से.मी. रख लें। दूसरी निराई-गुडाई आवश्यकता हों तो 40-45 दिन पर की
जा सकती है।
रासायनिक
नियन्त्रणः जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए
बुवाई के तुरन्त बाद लेकिन अंकुरण से पुर्व पेन्डीमेथालिन 30 प्रतिशत दवा को 2.5
लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।