ग्वार एक फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जिसके उत्पादन की दृष्ठि से राजस्थान अग्रणी राज्य है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। ग्वार का शाब्दिक अर्थ गौ आहार है, अर्थात प्राचीन काल में इसकी उपयोगिता केवल पशुओं के लिए
उन्नत किस्में:
आर.जी.सी. 936, एच.जी. 2-20, आर.जी.सी. 1066, आर.जी.सी. 1033, आर.जी.सी. 1031,
आर.जी.सी. 1003, आर.जी.सी. 1002, आर.जी.सी. 1017 और आर.जी.सी. 986
बीज की मात्राः
ग्वार की बुवाई हेतु
वातावरण व भूमि की परिस्थिति के अनुसार बीज की मात्रा का निर्धारण किया जाना
चाहिए। बारानी क्षेत्रों के लिए 16 कि.ग्रा. एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए 24
कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर की दर से पर्याप्त रहता है।
बीज उपचारः
ग्वार के बीज को बुवाई से
पूर्व 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50 डब्ल्यू.पी.
+ 4 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. + 10 ग्राम राइज़ोबीयम कल्चर प्रति किलोग्राम
बीज की दर से एफ.आई.आर. तकनीक द्वारा उपचारित जरूर करें।
फसल ज्यामितीः
कतार
से कतार 30 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधनः-
ग्वार मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ
सिफारिश की गयी 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 32
कि.ग्रा. फॉसफोरस एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के
अनुसार करें;
पोषक तत्व |
खाद/उर्वरक |
ईकाइ |
खाद/उर्वरकों की
मात्रा (प्रति हैक्टेयर) |
|
विकल्प 1 |
विकल्प 2 |
|||
जैविक खाद |
कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट |
टन |
8/4 |
8/4 |
नत्रजन |
युरीया |
कि.ग्रा. |
18 |
45 |
फॉस्फोरस |
डी.ए.पी. |
कि.ग्रा. |
70 |
-- |
एस.एस.पी. |
कि.ग्रा. |
-- |
175 |
|
गंधक |
तत्व गंधक |
कि.ग्रा. |
45 |
20 |
जिप्सम |
कि.ग्रा. |
250 |
100 |
नोटः खाद एवं उर्वरकों का
उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट विकल्पों तथा गंधक युक्त्त उर्वरकों में से भी किसी एक
विकल्प के आधार पर करें।
बुवाई के
20-25 दिन पहले अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद एवं तत्व गंधक या
जिप्सम की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें।
जिप्सम का उपयोग तीसरे वर्ष करना चाहिए। जबकी नत्रजन एवं फॉसफोरस की उचित मात्रा
को बुवाई के समय बीज के साथ सीड-कम-फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें। गंधक युक्त्त उर्वरक का उपयोग मृदा मे कमी होने पर ही करें।
सिंचाई
प्रबंधनः
ग्वार को कम जल मांग एवं वर्षा के पानी की उपलब्धता के कारण सिंचाई की आवश्यकता नही होती है, अपितु अधिक वर्षा होने की स्थिति मे जल निकास की
व्यवस्था करनी होती है। लेकिन बुवाई के बाद फसल की प्रमुख क्रांतिक
अवस्थाओं (वानस्पतिक वृद्धी, पुष्पन
एवं फली भरने) के दौरान यदि अनियमित वर्षा के कारण सूखा पड़ने
की स्थिती हों तो उस समय पूरक/जीवनरक्षक सिंचाई की व्यवस्था की जा सकें तो उत्पादन अच्छा मिलता है।
खरपतवार
नियन्त्रणः
निराई-गुडाईः
मोठ की फसल में कम से कम दो निराई-गुडाई की आवश्यकता
होती है। पहली बार 20-25 दिन बाद करें तथा इसी समय पौधो की छंटनी करके पौधे से
पौधे की दूरी 10 से.मी. रख लें। दूसरी निराई-गुडाई आवश्यकता हों तो 40-45 दिन पर की
जा सकती है।
रासायनिक
नियन्त्रणः जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए:-
- चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए बुवाई के 20-25 दिन बाद इमाजेथापीर 10 एस.एल दवा को 40 ग्राम सक्रीय तत्व (400 ग्राम व्यावसाईक दवा) प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।
- चौड़ी पत्ती एवं घास कुल दोनों प्रकार के खरपतवारों हेतु बुवाई के 20-25 दिन बाद इमाजेथापीर + इमाजामोक्स दोनों के तैयार मिश्रण को 40 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।