तिल खरीफ में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों मे से मुख्य है, और इसकी खेती शुद्ध एवं मिश्रित फसल के रूप मे की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में प्रायः इसे ज्वार, बाजरा तथा अरहर के साथ बोते है। तिल के अधिक उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों के प्रयोग व आधुनिक सस्य क्रियाओं को
उन्नत किस्में:
आर.टी. 46, आर.टी. 125,
आर.टी. 127, आर.टी. 346 (चेतक), आर.टी. 351
बीज की
मात्राः तिल की बुवाई हेतु वातावरण व भूमि की परिस्थिति के अनुसार बीज की
मात्रा 2-3 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से उपयोग करनी चाहिए
है।
बीज
उपचारः तिल के बीज को बुवाई से
पूर्व 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50 डब्ल्यू.पी.
+ 4 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित जरूर करें।
फसल
ज्यामितीः कतार
से कतार 30 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधनः- तिल मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 32 कि.ग्रा. फॉसफोरस एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करें;
पोषक तत्व |
खाद/उर्वरक |
ईकाइ |
खाद/उर्वरकों की मात्रा (प्रति हैक्टेयर) |
|
विकल्प 1 |
विकल्प 2 |
|||
जैविक खाद |
कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट |
टन |
8/4 |
8/4 |
नत्रजन |
युरीया |
कि.ग्रा. |
60 |
85 |
फॉस्फोरस |
डी.ए.पी. |
कि.ग्रा. |
70 |
-- |
एस.एस.पी. |
कि.ग्रा. |
-- |
175 |
|
गंधक |
तत्व गंधक |
कि.ग्रा. |
45 |
20 |
जिप्सम |
कि.ग्रा. |
250 |
100 |
नोटः खाद एवं उर्वरकों का उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट विकल्पों तथा गंधक युक्त्त उर्वरकों में से भी किसी एक विकल्प के आधार पर करें।
बुवाई के
20-25 दिन पहले अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद एवं तत्व गंधक या
जिप्सम की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें।
जिप्सम का उपयोग तीसरे वर्ष करना चाहिए। जबकी नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस
की पूरी मात्रा को बुवाई के समय बीज के साथ सीड-कम-फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें, तथा आधी
बची नत्रजन को 30-35 दिन बाद नमी होने पर छिड़क कर दें। गंधक युक्त्त उर्वरक का उपयोग मृदा मे कमी होने पर ही करें।
खरपतवार
नियन्त्रणः
तिल की
पल्लव अवस्था मे वृद्धी बहुत धीमी होने के कारण फसल के शुरुआती 25-30 दिनों का समय
खरपतवारों से प्रतिस्पर्धा हेतु अत्यधिक संवेदनशील होता है। अतः कम से कम एक निराई-गुडाई 25-30 दिन बाद आवश्यक रूप से करनी चाहिये तथा इसी समय पौधो की छंटनी करके पौधे से पौधे
की दूरी 10 सेन्टीमीटर रख लें जीससे कि मृदा मे नमी संरक्षण और फसल पर कीटों व
रोगों का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम होगा।
सिंचाई
प्रबंधनः
तिल को कम जल मांग एवं वर्षा होने के कारण सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। लेकिन बुवाई के बाद फसल की प्रमुख क्रांतिक
अवस्थाओं (4-5 पत्ती, अवस्था, पुष्पन एवं फली बनना) के दौरान यदि अनियमित वर्षा
के कारण सूखा पड़ने की स्थिती हों तो उस समय पूरक/जीवनरक्षक सिंचाई की व्यवस्था की
जानी चाहिए।