Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: सरसों उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

सरसों उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

तिलहन के उत्पादन मे सरसों का देश मे दुसरा प्रमुख स्थान है। इसके तेल का उपयोग मुख्य रूप से विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ बनाने, शरीर एवं बालों मे लगाने तथा साबुन व ग्लिसरोल बनाने आदि मे किया जाता है। सरसों मे उपस्थित तीखापन एलाइल आइसोथियोसाइनेट नामक कार्बनिक पदार्थ के

कारण आती है। सरसों कम सिंचाई व कम लागत मे होने के कारण इसकी खेती संरक्षित नमी के बारानी क्षेत्रों व सिंचित क्षेत्रों दोनों ही परिस्थितियों मे की जा सकती है।

उन्नत किस्में: एन.आर.सी.डी.आर. 2, आर.जी.एन. 73, जी.डी.एम. 4, डी.आर.एम.आर.आइ.जे. 31, जी.डी.एम. 5

बीज की मात्राः सरसों की बुवाई के लिए 4 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग किया जाता है।

बीज उपचारः 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50 डब्ल्यू.पी. प्रति कि.ग्रा. + 4 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. से बीज को उपचारित करना चाहिए।

फसल ज्यामितीः कतार से कतार 45 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधनः- सरसों मे पोषक तत्व प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 92 कि.ग्रा. नत्रजन, 32 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करें;

पोषक तत्व

खाद/उर्वरक

ईकाइ

खाद/उर्वरकों की मात्रा (प्रति हैक्टेयर)

विकल्प 1

विकल्प 2

जैविक खाद

कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट

टन

16/8

16/8

नत्रजन

युरीया

कि.ग्रा.

175

200

फॉस्फोरस

डी.ए.पी.

कि.ग्रा.

70

--

एस.एस.पी.

कि.ग्रा.

--

200

गंधक

तत्व गंधक

कि.ग्रा.

45

18

जिप्सम

कि.ग्रा.

250

100

नोटः खाद एवं उर्वरकों का उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट विकल्पों तथा गंधक युक्त्त उर्वरकों में से भी किसी एक विकल्प के आधार पर करें।

अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें। बुवाई के समय नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा बीज के साथ या सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा के पुनः दो भाग करें, जिसके एक भाग को बुवाई के 20-30 दिन बाद एवं दुसरे भाग को बुवाई के 40-45 दिन बाद सिंचाई के समय देवें।

सिंचाई प्रबंधनः बुवाई के बाद सरसों को तीन सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई जमीन के अनुसार बुवाई के 20-30 दिन बाद (शाखायें बनते समय) करें। दूसरी सिंचाई 40-45 दिन बाद (फूल व फली आने लगें तब) करें। तीसरी सिंचाई 70-75 दिन बाद (फली बड़ने व दाने बनते समय) करें। इसके अलावा आवश्यकता हो तो एक अन्तिम चौथी मगर हल्की सिंचाई 90-95 दिन बाद (दाने पकते समय) करें। फव्वारें से सिंचाई करने के लिए सरसों की बुवाई के बाद क्रमषः 35, 65, 75, 85 एवं 105 वें दिन पर तीन घंटे प्रत्येक के अनुसार करें।

खरपतवार नियन्त्रणः सरसों की फसल में कम से कम एक निराई-गुडाई 25-30 दिन बाद आवश्यक रूप से करनी चाहिये तथा इसी समय छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रख लें जीससे कि मृदा मे नमी संरक्षण और फसल पर कीटों व रोगों का प्रकोप भी अपेक्षाकृत कम हों। जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए बुवाई के बाद परंतु अंकुरण से पहले पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. दवा को 1.65 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।

ओरोबेंकी (ब्रूमरेप): यह एक पराश्रयी खरपतवार है, जिसके नियन्त्रण के लिए निम्न उपाय करें,

  • प्रभावित क्षेत्र मे कम से कम तीन वर्ष का फसल-चक्र अपनाये।
  • बुवाई के लिए शुद्ध एवं स्वस्थ बीज का ही चुनाव करें तथा बीज को उपचारित जरूर करें।
  • गर्मी में खेत की गहरी जुताई जरूर करें, तथा बुवाई से पूर्व नीम की खली 2.5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से देशी खाद के साथ भूमि में मिलावें या इसकी 200 ग्राम मात्रा को बुवाई के समय कतारों मे डालें।
  • रासायनिक नियन्त्रण के लिए ग्लाईफोसेट दवा का 25 ग्राम/हैक्टेयर की दर से लें तथा इसे एक प्रतित अमोनियम सल्फेट के साथ मिलाकर बुवाई के 25-30 दिन बाद छिड़काव करें। आवश्यक हों तो 55-60 दिन बाद इसी दवा का 50 ग्राम/हैक्टेयर की दर से दोबारा छिड़काव करें। ध्यान रहे, इसमे दवा की मात्रा एवं छिड़काव के समय का विशेष महत्व है।
  • यदि प्रकोप अधिक हो तो बुवाई के 60-65 दिन पर हाथ से खरपतवार निकालें।