Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: जीरा उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

जीरा उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

बीजीय मसाला उत्पादन मे जीरे का दुसरा प्रमुख स्थान है, जिसका वानस्पतिक नाम क्युमिनम साइमिनम है। इसके वाष्पशील सुगंधित तेल का उपयोग खुशबूदार साबुन व केश तेल बनाने व ठंडाई, शराब आदि पेय पदार्थो को सुसज्जित करने में भी किया जाता हैं। जीरे मे वायुनाशक व मूत्रवर्धक गुण पाये जाते है, जिसके कारण देशी व आयुर्वेदिक दवाओं में जीरे का उपयोग होता है। मसाले के रूप में जीरे को हर प्रकार की सब्जियाँ, सूप, अचार, सॉस, पनीर आदी को स्वादिष्ट करने के लिए काम मे लिया जाता हैं।
उन्नत किस्में: जी.सी. 4, आर.जेड. 223, आर.जेड़. 209 एवं आर.जेड. 19
बीज की मात्राः जीरे की बीजाई हेतु 12 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से उपयोग किया जाता है।
बीज उपचारः 2 ग्राम कार्बेण्डाजि़म 50 डब्ल्यू.पी. प्रति कि.ग्रा. + 4 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. से बीज को उपचारित करना बहुत आवश्यक होता है।
फसल ज्यामितीः कतार से कतार 30 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर ही बुवाई करनी चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधनः- जीरे मे पोषक तत्व प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 32 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटास एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करें;

पोषक तत्व

खाद/उर्वरक

ईकाइ

खाद/उर्वरकों की मात्रा (प्रति हैक्टेयर)

विकल्प 1

विकल्प 2

जैविक खाद

कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट

टन

10/5

10/5

नत्रजन

युरीया

कि.ग्रा.

56

78

फॉस्फोरस

डी.ए.पी.

कि.ग्रा.

56

--

एस.एस.पी.

कि.ग्रा.

--

162

पोटास

एम.ओ.पी.

कि.ग्रा.

30

30

नोटः खाद एवं उर्वरकों का उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट किसी भी एक विकल्प के आधार पर करें।
अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें। बुवाई के समय नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस एवं पोटास की पूरी मात्रा बीज के साथ या सीड कम फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें। नत्रजन की शेष आधी मात्रा के पुनः दो भाग करें, जिसके एक भाग को बुवाई के 35 दिन बाद एवं दुसरे भाग को बुवाई के 60 दिन बाद सिंचाई के समय देवें।
सिंचाई प्रबंधनः बुवाई के तुरंत बाद एक सिंचाई करें परंतु यह ध्यान रखें कि पानी का बहाव तेज न रहें अन्यथा बीज अस्त-व्यस्त हो सकते है। दूसरी हल्की सिंचाई जमीन के अनुसार बुवाई के 4-10 दिन बाद करें जब बीज फूलने लगें। चूँकि बीजों का अंकुरण दूसरी सिंचाई के बाद ही दिखाइ देता है, इसलिए यदि धूप से जमीन पर पपड़ी जम जाये तो एक बहूत ही हल्की सिंचाई और कर सकते है ताकी अंकुरण अच्छी तरह से हो सकें। इसके बाद मौसम व भूमि के आधार पर 20-25 दिनों के अन्तराल पर कुल तीन सिंचाईया क्रमषः 35, 60 एवं 85 दिन बाद करें। इनमे से अन्तिम सिंचाई दाने बनते समय गहरी करें। फसल पकने के समय सिंचाई बिल्कुल न करें।
खरपतवार नियन्त्रणः जीरे की फसल में कम से कम दो निराई-गुडाई की आवष्यकता होती है। पहली बार 30-35 दिन बाद करें जब पौधे 5 सेन्टीमीटर लम्बे हो, तथा इसी समय पौधो की छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेन्टीमीटर रख लें जीससे कि फसल पर कीटों व रोगों का प्रकोप अपेक्षाकृत कम हों। दूसरी निराई-गुडाई 55-60 दिन बाद करें। जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए बुवाई के बाद परंतु अंकुरण से पहले पेन्डीमेथालिन 30 ई.सी. दवा को 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें। या बुवाई के 20-25 दिन बाद आक्सीफ्लूओरफेन 23.5 ई.सी. दवा को 200 मिलीलीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।