Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: मूँगफली की उन्नत कृषि तकनीक

मूँगफली की उन्नत कृषि तकनीक

देश में कुल तिलहन उत्पादन मे मूँगफली का दुसरा प्रमुख स्थान है। प्रमुख तिलहनों में से यह एकमात्र फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जो दलहनी फसलों की तरह जड़ों मे स्थित राइज़ोबियम द्वारा नत्रजन का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने मे सहायक होती है। मूँगफली की

खेती के लिए गहरी, अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट या रेतीली मिट्टी जो की लवणीय एवं क्षारीय नहीं हो, सबसे अधिक उपयुक्त रहती है, ताकि रेतीली मिट्टी मे मूँगफली के खूंटो (पेग) का प्रवेश एवं उनका विकास और फसल की कटाई (हार्वेस्टिंग) आदि कार्य आसान हो जाते है।
उन्नत किस्में: 

एच.एन.जी. 10, एच.एन.जी. 69, एच.एन.जी. 123, आर.जी. 425 (राज दुर्गा), गिरनार 2, मल्लिका (आई.सी.एच.जी. 00440), चन्द्रा, एम 13, आर.जी. 559, जी.जे.जी. 18, जी.जी. 20, जी.जी. 21

बीज की मात्राः  बुवाई हेतु मूँगफली की शाखाओं के बढ़ने की प्रकृति के अनुसार झुमका, अर्ध-फैलाव एवं फैलाव वाली किस्मों के लिए क्रमशः 100, 80 एवं 60 कि.ग्रा. बीज (गुली) प्रति हैक्टर की दर से पर्याप्त रहता है। बुवाई के 15 दिन पहले मूँगफली के दानों (गुली) को छिलकों से अलग नहीं करना चाहिए।

बीज उपचारः मूँगफली के बीजों (गुली) को बुवाई से पूर्व 2 मि.ली. प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. + 6 मि.ली. क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. + 10 ग्राम राइज़ोबीयम कल्चर प्रति किलोग्राम बीज की दर से एफ.आई.आर. तकनीक द्वारा उपचारित जरूर करें।

फसल ज्यामितीः  कतार से कतार 30 सेन्टीमीटर की दूरी रख कर एवं 5–7 से.मी. की गहराई पर ही मूँगफली की बुवाई करनी चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधनः-  मूँगफली मे उचित पोषण प्रबंधन के लिए कम्पोस्ट खाद के साथ सिफारिश की गयी 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 32 कि.ग्रा. फॉसफोरस एवं 40 कि.ग्रा. सल्फर की मात्रा का उपयोग निम्न विकल्पों के अनुसार करें;

पोषक तत्व

खाद/उर्वरक

ईकाइ

खाद/उर्वरकों की मात्रा (प्रति हैक्टेयर)

विकल्प 1

विकल्प 2

जैविक खाद

कम्पोस्ट/वर्मिकम्पोस्ट

टन

8/4

8/4

नत्रजन

युरीया

कि.ग्रा.

18

45

फॉस्फोरस

डी.ए.पी.

कि.ग्रा.

70

--

एस.एस.पी.

कि.ग्रा.

--

175

गंधक

तत्व गंधक

कि.ग्रा.

45

20

जिप्सम

कि.ग्रा.

250

100

नोटः खाद एवं उर्वरकों का उपयोग उपरोक्त निर्दिष्ट विकल्पों तथा गंधक युक्त्त उर्वरकों में से भी किसी एक विकल्प के आधार पर करें।

बुवाई के 20-25 दिन पहले अच्छी तरह सड़ा-गला कर तैयार की गयी कम्पोस्ट खाद एवं तत्व गंधक या जिप्सम की पूरी मात्रा को खेत में जुताई से पुर्व डालकर अच्छी तरह मिला देवें। जिप्सम का उपयोग तीसरे वर्ष करना चाहिए। जबकी नत्रजन एवं फॉसफोरस की उचित मात्रा को बुवाई के समय बीज के साथ सीड-कम-फ़र्टिलाइज़र ड्रिल से डालें।

सिंचाई प्रबंधनः 

मूँगफली को लगभग 8 से 10 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। खरीफ मे वर्षा नहीं होने की स्थिति मे फसल की प्रमुख क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई की व्यवस्था की जानी चाहिएवहीं अधिक वर्षा होने पर जल निकास की व्यवस्था भी करनी चाहिए, अन्यथा पौषक तत्वों की कमी के लक्षण और जड़ गलन की समस्या होने की संभावना रहती हैबुवाई के बाद प्रथम सिंचाई 20-25 दिनों पर करें और उसके बाद की उत्तरवर्ती सिंचाइयाँ वर्षा एवं फसल की आवश्यकतानुसार करें। यदि एक ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हों तो बुवाई के 55-75 दिन की अवधि मे करनी चाहिए।

खरपतवार नियन्त्रणः 

निराई-गुडाईः मूँगफली की फसल में एक बार निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है, जो लगभग 25-30 दिन मे पूरा करके साथ ही इसी समय पौधो की छंटनी एवं मिट्टी चड़ाने का कार्य भी करलें। ध्यान रहें, 30 दिन बाद फूल आना शुरू होने के बाद खेत मे गुड़ाई का कार्य बिल्कुल भी नहीं करें।

रासायनिक नियन्त्रणः जहां निराई-गुड़ाई का प्रबन्ध नही हो सके वहां खरपतवार नियन्त्रण के लिए बुवाई के तुरन्त बाद लेकिन अंकुरण से पुर्व पेन्डीमेथालिन 30 प्रतिशत दवा को 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें। तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए बुवाई के 20-25 दिन बाद इमाजेथापीर 10 एस.एल दवा को 40 ग्राम सक्रीय तत्व (400 ग्राम व्यावसाईक दवा) प्रति हैक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।