Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: खरीफ
खरीफ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
खरीफ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मूँगफली की उन्नत कृषि तकनीक

देश में कुल तिलहन उत्पादन मे मूँगफली का दुसरा प्रमुख स्थान है। प्रमुख तिलहनों में से यह एकमात्र फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जो दलहनी फसलों की तरह जड़ों मे स्थित राइज़ोबियम द्वारा नत्रजन का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने मे सहायक होती है। मूँगफली की

तिल की उन्नत कृषि तकनीक

तिल खरीफ में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों मे से मुख्य है, और इसकी खेती शुद्ध एवं मिश्रित फसल के रूप मे की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में प्रायः इसे ज्वार, बाजरा तथा अरहर के साथ बोते है। तिल के अधिक उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों के प्रयोग व आधुनिक सस्य क्रियाओं को

ग्वार की उन्नत कृषि तकनीक

ग्वार एक फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जिसके उत्पादन की दृष्ठि से राजस्थान अग्रणी राज्य है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। ग्वार का शाब्दिक अर्थ गौ आहार है, अर्थात प्राचीन काल में इसकी उपयोगिता केवल पशुओं के लिए

मोठ की उन्नत कृषि तकनीक

कुल दलहन उत्पादन मे मोठ (मोठ बीन) आठवें स्थान पर है, तथा विश्व पटल पर भारत एवं देश मे राजस्थान मोठ के उत्पादन मे अग्रणी है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मोठ की खेती बारानी परिस्थितियों मे किये जाने से शुष्क से

मूँग की उन्नत कृषि तकनीक

मूँग का वानस्पतिक नाम विग्ना रेडिएटा, जो कुल दलहन उत्पादन मे चतुर्थ स्थान पर है। फलीदार दलहनी फसल होने के कारण मूँग वायुमण्डलीय नत्रजन (नाइट्रोजन) का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मूँग की खेती बारानी व सिंचित दोनों ही परिस्थितियों मे की जाती है,

तिल का पर्णाभत्ता (फाइलोडी) रोग एवं नियंत्रण

तिल शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों की प्रमुख तिलहनी फसल है, जो मुख्यरूप से खरीफ ऋतु में लगाई जाती है। तिल के उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारकों में कीट एवं व्याधियों का प्रमुख योगदान माना जा सकता है। यदि रोग की बात की जाय तो तिल का पर्णाभत्ता (फाइलोडी) नामक रोग महत्वपूर्ण है जो फाईटोप्लाज्मा (एम.एल.ओ.) द्वारा होता है, तथा इस रोग के प्रसारण मे

खरीफ फसलों मे सूक्ष्म पोषक तत्व प्रबंधन

विविध उन्नत किस्मों की उपज क्षमता के अनुसार अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि "समन्वित पौषक तत्व प्रबन्धन (आई.एन.एम.)" को अपनाया जाय। तथा इस "इंटिग्रेटेड न्यूट्रीयेंट मैनेजमेंट (I.N.M.)" कार्यक्रम के तहत विभिन्न फसलों के लिए अनुशंसित

सभी आवश्यक मुख्य एवं सूक्ष्म पौषक तत्वों कि पूर्ति करने हेतु खाद एवं उर्वरकों की मात्रा का समुचित प्रयोग मृदा परीक्षण फसल अनुक्रिया के आधार पर ही किया जाना चाहिए।

फसलों मे मुख्य (नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश) पौषक तत्वों कि पूर्ति अनुमोदनानुसार उपलब्ध विभिन्न जैविक खाद एवं उर्वरक के स्त्रोतों के संयुक्त प्रयोग द्वारा करनी चाहिए, जिससे कि उत्पादन स्तर के साथ ही मृदा स्वास्थ्य को भी कायम रखा जा सकें। इसके अतिरिक्त यदि पौधे किन्ही कारणों से किसी भी पौषक तत्व कि कमी के लक्षण प्रदर्शित करें तो निम्नानुसार पौषक प्रबन्धन किया जाना चाहिए;

सामान्यतः 

अनाज वाली फसलों में:

  • बाजरे मे बुवाई के समय 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट (33%) को मृदा मे मिलाए या खड़ी फसल मे 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम एक लीटर पानी मे) जिंक सल्फेट के घोल का पर्णीय छिड़काव करें।
  • बाजरे मे बुवाई के 20-25 दिन बाद 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम एक लीटर पानी मे) फैरस सल्फेट के साथ 0.1 प्रतिशत साईट्रिक अम्ल का घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करें।

दलहनी फसलों में:-

  • चने मे बुवाई के बाद खासकर क्षारीय मृदाओं में लोह तत्व की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम एक लीटर पानी मे) फैरस सल्फेट के साथ 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम प्रति लीटर पानी मे) सिट्रिक अम्ल (Citric Acid) का घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करें।

तिलहनी फसलों में:-

  • मूँगफली मे जिंक तत्व की कमी होने या जड़ गलन की समस्या होने पर बुवाई के समय 12 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट (33%) को मृदा मे मिलाए या खड़ी फसल मे कमी के लक्षण प्रकट होने पर 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम एक लीटर पानी मे) जिंक सल्फेट के घोल का पर्णीय छिड़काव करें।
  • मूँगफली मे बुवाई के समय 12 कि.ग्रा. फैरस सल्फेट (33%) को मृदा मे मिलाए या खड़ी फसल मे पीलापन दिखाई देने पर 0.5 प्रतिशत (5 ग्राम एक लीटर पानी मे) फैरस सल्फेट के साथ 0.1 प्रतिशत (एक ग्राम एक लीटर पानी मे) साईट्रिक अम्ल का घोल बनाकर पर्णीय छिड़काव करें।

 


ग्वार के जीवाणु झुलसा रोग का नियंत्रण

ग्वार की फसल में जीवाणु झुलसा (बैक्टीरियल ब्लाइट) बीमारी का प्रकोप ज़ैंथोमोनास सायमोप्सिडिस नामक जीवाणु से खासकर बरसात के कारण हवा में अधिक नमी और ज्यादा

बाजरे की फसल को हैलिकोवर्पा की लट एवं अर्गट रोग से बचायें

खरीफ ऋतु मे शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में बाजरे की खेती प्रमुख अनाज वाली फसल के रूप मे की जाती है, जो खाने के अलावा पशुओं के लिए पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण होती है।

खरीफ दलहनों में रोग प्रबंधन

खरीफ दलहनों मे क्रमष: मूँग, मोठ, उड़द, चँवला, अरहर आदि प्रमुख रूप से उगाई जाती है। चूंकि दलहनों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, रेशे एवं वसा की भरपूर मात्रा होने के साथ ही ये विभिन्न अमिनो

खरीफ दलहनों में कातरा, भृंग एवं फली छेदक कीटों का प्रबंधन

मूँग, मोठ, उड़द, चँवला, अरहर आदि खरीफ मे उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें है। इनकी खेती बारानी व सिंचित दोनों ही परिस्थितियों मे की जाती है, किन्तु कम सिंचाई मे होने से शुष्क

खरीफ दलहनों में चूसक कीटों का प्रबंधन

खरीफ दलहनों मे क्रमष: मूँग, मोठ, उड़द, चँवला, अरहर आदि प्रमुख रूप से उगाई जाती है। चूंकि दलहनों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, रेशे एवं वसा की भरपूर मात्रा होने के साथ ही ये विभिन्न

मूँगफली की फसल को पत्ती सुरंगक और सफ़ेद लट से बचाएँ

जिन किसानों ने अपने खेत मे खरीफ मूँगफली की बुवाई समय पर की है उनकी फसल लगभग एक महीने की हो गयी होगी। अत: अपने खेत एवं आस-पास की फसलों पर कीट एवं