Krishi Gyan - कृषि ज्ञान: रोग नियंत्रण
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जड़ गलन रोग की समस्या के लिए मृदा एवं बीज उपचार का जैविक तरीका

ट्राइकोडर्मा विरीडी (जैविक फफूंदनाशी) को 4 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 100 कि.ग्रा. देशी खाद (कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट) में अच्छी तरह मिलाकर 20 से 25 दिनों के लिए छायां मे रखें और पानी छिड़क कर

तिल का पर्णाभत्ता (फाइलोडी) रोग एवं नियंत्रण

तिल शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों की प्रमुख तिलहनी फसल है, जो मुख्यरूप से खरीफ ऋतु में लगाई जाती है। तिल के उत्पादन को प्रभावित करने वाले कारकों में कीट एवं व्याधियों का प्रमुख योगदान माना जा सकता है। यदि रोग की बात की जाय तो तिल का पर्णाभत्ता (फाइलोडी) नामक रोग महत्वपूर्ण है जो फाईटोप्लाज्मा (एम.एल.ओ.) द्वारा होता है, तथा इस रोग के प्रसारण मे

ग्वार के जीवाणु झुलसा रोग का नियंत्रण

ग्वार की फसल में जीवाणु झुलसा (बैक्टीरियल ब्लाइट) बीमारी का प्रकोप ज़ैंथोमोनास सायमोप्सिडिस नामक जीवाणु से खासकर बरसात के कारण हवा में अधिक नमी और ज्यादा

बाजरे की फसल को हैलिकोवर्पा की लट एवं अर्गट रोग से बचायें

खरीफ ऋतु मे शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में बाजरे की खेती प्रमुख अनाज वाली फसल के रूप मे की जाती है, जो खाने के अलावा पशुओं के लिए पौष्टिक चारा उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण होती है।

खरीफ दलहनों में रोग प्रबंधन

खरीफ दलहनों मे क्रमष: मूँग, मोठ, उड़द, चँवला, अरहर आदि प्रमुख रूप से उगाई जाती है। चूंकि दलहनों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, रेशे एवं वसा की भरपूर मात्रा होने के साथ ही ये विभिन्न अमिनो