Krishi Gyan - कृषि ज्ञान

मूँग की उन्नत कृषि तकनीक

मूँग का वानस्पतिक नाम विग्ना रेडिएटा, जो कुल दलहन उत्पादन मे चतुर्थ स्थान पर है। फलीदार दलहनी फसल होने के कारण मूँग वायुमण्डलीय नत्रजन (नाइट्रोजन) का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मूँग की खेती बारानी व सिंचित दोनों ही परिस्थितियों मे की जाती है,

सरसों की फसल मे आरा मक्खी का नियंत्रण

आरा मक्खी जिसे मस्टर्ड फ्लाई के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट सरसों की फसल को शुरुआती 8-12 दिनों मे अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की काले स्लेटी रंग की सूंड़ीयाँ अंकुरण के कुछ ही दिन मे सर्वाधिक नुकसान करती है। जो सरसों की पत्तियों को किनारों व बीच से काट कर

सरसों उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

तिलहन के उत्पादन मे सरसों का देश मे दुसरा प्रमुख स्थान है। इसके तेल का उपयोग मुख्य रूप से विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ बनाने, शरीर एवं बालों मे लगाने तथा साबुन व ग्लिसरोल बनाने आदि मे किया जाता है। सरसों मे उपस्थित तीखापन एलाइल आइसोथियोसाइनेट नामक कार्बनिक पदार्थ के

जीरा उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

बीजीय मसाला उत्पादन मे जीरे का दुसरा प्रमुख स्थान है, जिसका वानस्पतिक नाम क्युमिनम साइमिनम है। इसके वाष्पशील सुगंधित तेल का उपयोग खुशबूदार साबुन व केश तेल बनाने व ठंडाई, शराब आदि पेय पदार्थो को सुसज्जित करने में भी किया जाता हैं। जीरे मे वायुनाशक व मूत्रवर्धक गुण पाये जाते है, जिसके कारण देशी व

चना उत्पादन की उन्नत खेती पद्दती

दलहन के उत्पादन मे चना प्रमुख फसल है, जिसका उपयोग मुख्यतः साबुत दानें, दाल व बेसन के रूप में किया जाता है। चना की फसल कम सिंचाई मे होने के कारण कम वर्षा वाले स्थानों मे भी इससे अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। चने की खेती संरक्षित नमी के

सहजन (मोरिंगा) का महत्व

सहजन बहुत ही उपयोगी पौधा है जिसे अंग्रेजी में "ड्रमस्टिक" एवं वैज्ञानि‍क नाम मोरिंगा ओलीफेरा से भी जाना जाता है। इस पौधे के लगभग सभी भाग खाने योग्य होते है। मोरिंगा की पत्तियों को सीधे ही सलाद के रूप मे खा सकते है या फिर इनको छायां मे सूखाकर पाउडर बना सकते है। मोरिंगा पौषण एवं औषधीय गुणों से सम्पन्न होता है। इसके बीजों से तेल भी नि‍काला जाता है। एक वर्ष में इसका

PROM - फॉस्फेट संपन्न जैविक खाद (Phosphate Rich Organic Manure)

अधिकांश भारतीय मृदाओ मे फॉस्फोरस की उपलब्धता कम या मध्यम होने के कारण इस तत्व की पूर्ति के लिए मृदा मे बाहरी स्त्रोत द्वारा प्रयोग करने की आवश्यकता होती है वहीं दूसरी और पौधों के संतुलित पोषण में फॉस्फोरस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। जबकि रासायनिक उर्वरकों की उच्च कीमत के कारण फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों के उपयोग मे कमी

जल संसाधन प्रबंधन

जल संरक्षण नीतियाँ और जल संरक्षण के उपाय जल क्षैत्र (वाटरशेड) प्रबंधन के मुख्य घटक है, जो प्राकृतिक संसाधनों के न्यूनतम खतरे के साथ इष्टतम उत्पादन के लिए एक वाटरशेड की भूमि और जल संसाधनों के उचित उपयोग को सम्मिलित करता है।

मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए जैव उर्वरकों का प्रयोग

आज कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाना कृषि वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सघन खेती से मृदा में पोषक तत्व धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। इस कमी को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पूरा किया जाता है। अधिकांश किसान संतृप्त मात्रा में रासायनिक खाद के उपयोग के बावजूद इष्टतम

कीट प्रबंधन के लिए तरल खाद (लिक्विड मेन्योर)

जैविक तरीके से फसलों/फलदार पौधों/सब्जियों आदि मे लगने वाले कीटों के उचित व प्रभावकारी प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रकार के कीटनाशी गुणों वाले खरपतवारों का उपयोग तरल